Sonography Meaning in Hindi: सोनोग्राफी क्या है? कब किया जाता है
सोनोग्राफी (Sonography) की मदद से शरीर की आंतरिक रचना को जानने में मदद मिलती है। इसलिए शरीर के आंतरिक अंगों में हो रही समस्याओं या फिर किसी भी मेडिकल कंडिशन का निदान करने के लिए अक्सर सोनोग्राफी (Sonography Meaning in Hindi) का सुझाव दिया जाता है। इतना ही नहीं बायॉप्सी के दौरान शरीर के कुछ असामान्य भागों की जानकारी भी मिलती है जिससे सहीं जगह से सैंपल कलेक्ट करने में मदद मिलती है।
गर्भावस्था के दौरान भी गर्भस्थ शिशु के विकास की जांच करने के लिए डॉक्टर नियमित रूप से सोनोग्राफी करने की सलाह देते हैं। इसके अलावा गोल ब्लेडर, किडनी स्टोन, लीवर डिजीज, एपेंडिक्स, ओवेरियन सिस्ट जैसी स्थिति के निदान में भी सोनोग्राफी का इस्तेमाल किया जाता है। शरीर की आंतरिक रचना का चित्रण करने के लिए इसमें खास तरह के साधनों का इस्तेमाल होता है। सोनोग्राफी में अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल किया जाता है जो शरीर के लिए हानिरहित होते हैं।
आप हमारे (Sonography Meaning in Hindi) ब्लॉग को पूरा पढ़ने के बाद आप अछे तरीके से समझ जायेंगे एसोनोग्राफी क्या है? कब किया जाता है? इस बारे में बहुत ही विस्तार से बताने वाले हैं।
सोनोग्राफी क्या है? (Sonography Meaning in Hindi)
In this Article
सोनोग्राफी को अल्ट्रासाउंड (Ultrasound meaning in Hindi) परिक्षण भी कहां जाता है। इसके जरिए प्रोड्यूस होने वाली अल्ट्रासाउंड ईमेज को सोनोग्राम कहा जाता है। यह रियल टाइम ईमेज या वीडियो बनाने के लिए हाई फ्रिक्वेंसी ध्वनि तरंगों का उपयोग करता है। सोनोग्राफी में अल्ट्रासाउंड भेजने के लिए ट्रांसड्यूसर नामक एक उपकरण का उपयोग किया जाता है। कंप्यूटर के जरिए अल्ट्रासाउंड तरंगों को इमेज में परिवर्तित करता है। प्रशिक्षित टेक्निशियन इस इमेज के जरिए शरीर की आंतरिक संरचना को देख और माप सकता है। जिससे मौजूदा समस्या और समस्या का निदान करने में मदद मिलती है।
सोनोग्राफी से शरीर के आंतरिक अंगों, टिशू और ब्लड फ्लो की डायनेमिक विजुअल ईमेज देखी जा सकती है। सोनोग्राफी की खास बात यह है कि इसमें कोई चीरा नहीं लगाया जाता और एक्स-रे की तरह इसमें रेडिएशन का भी उपयोग नहीं किया जाता। सोनोग्राफी दर्दरहित और सुरक्षित होती है।
सोनोग्राफी टेस्ट क्यों किया जाता है? (Why is Sonography Test in Hindi)
सोनोग्राफी के जरिए शरीर की आंतरिक संरचनाओं की लाईव इमेज देखी जा सकती है। यह एक कैमरे की तरह काम करता है। जो रियल टाइम में शरीर के अंगों की तस्वीरें खींच सकता है।
टिशू के आकार और घनत्व की मदद से कुछ मेडिकल कंडिशन का निदान करने में सोनोग्राफी उपयोगी है। शरीर पर बिना चीरा लगाएं उसकी आतंरिक स्थिति की जांच करने के लिए सोनोग्राफी एक अच्छा विकल्प है।
गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय और गर्भस्थ शिशु के विकास की निगरानी के लिए सोनोग्राफी का सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता है। इसके अलावा ग्रंथियों, स्तन गांठों, जोड़ों की स्थिति, हड्डियों में समस्या और बायोप्सी के दौरान भी इसका उपयोग किया जाता है।
सोनोग्राफी कैसे काम करती है? (How Does Sonography Work)
सोनोग्राफी के लिए सबसे पहले त्वचा पर जेल की पतली परत लगाई जाती है। यह जेल त्वचा को चिकनाई देता है और जिससे अल्ट्रासाउंड तरंगे जेल के माध्यम से ट्रांसड्यूसर से शरीर में संचारित हो सके। इसके बाद इस क्षेत्र पर ट्रांसड्यूसर घुमाया जाता है। इस दौरान इलैक्ट्रिक करेंट हाई फ्रिक्वेंसी ध्वनि तरंगों में परिवर्तित होती है और शरीर के टिशू में तरंगों को भेजा जाता है। यह तरंगे बाउन्स बैक होती है और इलेक्ट्रिकल सिग्नल में परिवर्तित होती है। फिर कंप्यूटर इन इलेक्ट्रिकल पेटर्न को रियल टाइम ईमेज या वीडियो में परिवर्तित करता है, जो पास की कंप्यूटर स्क्रीन पर प्रदर्शित होते हैं।
सोनोग्राफी के प्रकार (Types of Sonography in Hindi)
मुख्य रूप से तीन प्रकार की सोनोग्राफी होती है।
1. प्रेगनेंसी (Prenatal or Obstetric Ultrasound) अल्ट्रासाउंड : गर्भावस्था के दौरान गर्भस्थ शिशु के विकास की निगरानी के लिए अक्सर सोनोग्राफी की जाती है। इस से अधिक भ्रृण की जांच, कितने दिन का गर्भ है, भ्रृण का विकास, इत्यादि की जांच की जाती है। ज्यादातर डॉक्टर 20 सप्ताह बाद सोनोग्राफी करने के लिए कहते हैं।
2. डायोग्नोस्टिक अल्ट्रासाउंड : शरीर के आंतरिक भागों को देखने के लिए डायोग्नोस्टिक अल्ट्रासाउंड का उपयोग किया जाता है। इसके जरिए शरीर में कुछ समस्या हो तो उसका निदान किया जा सकता है। इससे शरीर में हो रहे दर्द या गांठों का कारण भी जाना जा सकता है। अधिकांश सोनोग्राफी में ट्रांसड्यूसर त्वचा पर लगाया जाता है लेकिन कुछ मामलों में योनि या मलाशय में लगाया जा सकता है।
3. सर्जरी के लिए अल्ट्रासाउंड : कभी कभी कुछ सर्जरी को सटीक तरीके से करने के लिए सोनोग्राफी की जाती है। टिशू या फिर तरल भागों में सहीं तरीके से सुई लगाने के लिए सोनोग्राफी का उपयोग किया जाता है।
सोनोग्राफी टेस्ट से पहले तैयारी (Preparation for Sonography Test in Hindi)
सोनोग्राफी टेस्ट पहले की तैयारी आपके सोनोग्राफी के प्रकार पर निर्भर करती है। कुछ प्रकार की सोनोग्राफी के लिए किसी भी तैयारी की आवश्यकता नहीं होती है।
पेल्विस और गर्भावस्था के दौरान या महिला प्रजनन सिस्टम और युरिनरी सिस्टम के लिए सोनोग्राफी करने के लिए आपको ज्यादा से ज्यादा पानी पीकर ब्लेडर को भरने के लिए कहा जाता है। इसके अलावा कुछ मामलों में विशेष तैयारी के लिए डॉक्टर हीं आपको सुझाव दे सकते हैं। इसके लिए आपको सोनोग्राफी से पहले ही निर्देश दे सकते हैं।
पित्ताशय की जांच करने के लिए पेट की सोनोग्राफी की जाती है और इसके लिए डॉक्टर सोनोग्राफी से पहले 6 घंटे तक उपवास करने के लिए कह सकते हैं। इमरजेंसी मामलों में तुरंत हीं सोनोग्राफी की जाएगी। सोनोग्राफी में आमतौर पर 30 मिनट से अधिक समय नहीं लगता है। हालांकि सोनोग्राफी से पहले फॉर्म भरने और अन्य प्रश्नों के उत्तर देने के लिए टेस्ट से लगभग 15 मिनट पहले पहुंचना जरूरी है।
सोनोग्राफी से क्या पता चलता है? (What Can Sonography Detect?)
सोनोग्राफी की मदद से कई तरह की मेडिकल कंडिशन का पता लगाया जा सकता है। जैसे कि ब्रेस्ट ट्यूमर, जोड़ों (Joints) की स्थिति, किडनी स्टोन, ट्यूमर, हड्डियों की समस्या, रक्त के थक्के, ब्लड फ्लो में समस्या, जन्मजात हृदय रोग जैसी कई समस्याओं का निदान किया जा सकता है।
गर्भावस्था के दौरान सोनोग्राफी के जरिए निम्नलिखित चीजों का पता लगाया जा सकता है:
- गर्भस्थ शिशु के विकास की जांच
- कभी कभी भ्रृण गर्भ के बहार विकसित हो जाता है ऐसे में उसकी जांच
- गर्भस्थ शिशु के दिल की धड़कन
- शिशु की उम्र और उसके आकार की जांच
- गर्भस्थ शिशु में डाउन सिंड्रोम के खतरे की जांच करना
- एक या एक से अधिक शिशु पर रहे हो तो उसकी जांच
सोनोग्राफी के फायदे (Benefits of Sonography in Hindi)
सोनोग्राफी टेस्ट के कई फायदे होते हैं।
- सोनोग्राफी दर्दरहित होती है। इसमें इंजेक्शन या चीरें की आवश्यकता नहीं होती है।
- सोनोग्राफी में एक्स-रे और सीटी स्कैन जैसी तकनीक की तरह रेडिएशन नहीं होता है और यह संपूर्ण सुरक्षित है।
- इसका कोई हानिकारक प्रभाव भी नहीं होता है।
- सोनोग्राफी सोफ्ट टिशू की इमेज को कैप्चर करता है, जो एक्स-रे पर अच्छी तरह से दिखाई नहीं देते।
- यह व्यापक रूप से सुलभ है और अन्य तरीकों की तुलना में सस्ता है।
- गर्भावस्था के दौरान गर्भस्थ शिशु के विकास, शारीरिक बनावट, वजन, लंबाई, आकार का पता लगाने के लिए सोनोग्राफी उपयोगी है।
- एक्टोपिक प्रेगनेंसी, मोलार प्रेगनेंसी जैसी स्थिति में जटिलताओं की जांच सोनोग्राफी के जरिए की जाती है।
- डिलीवरी से पहले गर्भस्थ शिशु हेड-फर्स्ट स्थिति में है या नहीं यह जानने के लिए सोनोग्राफी की जाती है।
क्या सोनोग्राफी सुरक्षित है? (Is a Safe Sonography Test in Hindi)
अध्ययन बताते हैं कि सोनोग्राफी आमतौर पर सुरक्षित होती है। इसके कोई हानिकारक दुष्प्रभाव नहीं होते हैं। सोनोग्राफी के दौरान कोई असुविधा भी नहीं होती है और न हीं चीरा लगाने की जरूरत होती है। इसके अलावा सोनोग्राफी में रेडिएशन की जगह साउंड वेव्स (ध्वनि तरंगों) का उपयोग किया जाता है, जो काफी सुरक्षित होता है।
सोनोग्राफी की लागत (Sonography Test Price in Hindi)
सोनोग्राफी की लागत सभी लेबोरेटरी में अलग-अलग होती है। सही केंद्र और जानकारी के साथ, आप इसे किफायती और प्रभावी ढंग से करवा सकते हैं। आमतौर पर सोनोग्राफी की लागत 500-1500 रूपए तक होती है।
- पेट की सोनोग्राफी: ₹800 – ₹1500
- गर्भावस्था सोनोग्राफी: ₹1000 – ₹2500
- 3D/4D सोनोग्राफी: ₹2000 – ₹5000
निष्कर्ष
सोनोग्राफी (Sonography Meaning in Hindi) शरीर के अंदरूनी हिस्सों की जांच करने के लिए बहुत उपयोगी है, इतना ही नहीं इसमें चीरा लगाने की भी जरूरत नहीं पड़ती। शरीर के आंतरिक हिस्से में हो रही समस्याओं का निदान करने के लिए इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इसके अलावा गर्भावस्था में इसका सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता है। गर्भावस्था की पुष्टि करने से लेकर गर्भस्थ शिशु के विकास की जांच भी इसी से की जाती है। पटना के बेहतरीन आईवीएफ केंद्रों (Best IVF Centre in Patna) में, सोनोग्राफी सुरक्षित गर्भावस्था सुनिश्चित करने और माता-पिता को आत्मविश्वास और जानकारी देने में अहम भूमिका निभाती है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
सोनोग्राफी कितने समय में होती है?
सोनोग्राफी का समय उसके प्रकार पर निर्भर करता है। आमतौर पर इसमें 30 मिनट का समय लगता है लेकिन सोनोग्राफी की पूर्व तैयारी के लिए 10-15 मिनट पहले लेबोरेटरी पहुंचना जरूरी होता है।
गर्भावस्था में सोनोग्राफी कब करानी चाहिए?
गर्भावस्था के 20 सप्ताह बाद डॉक्टर सोनोग्राफी के लिए कह सकते हैं, लेकिन कुछ मामलों में गर्भावस्था की पुष्टि के लिए इससे पहले भी कह सकते हैं।
सोनोग्राफी के बाद क्या ध्यान रखना चाहिए?
सोनोग्राफी एक मेडिकल इमेजिंग टेस्ट होता है। सोनोग्राफी पूरी होने के तुरंत बाद आप सामान्य गतिविधियों को फिर से शुरू कर सकते हैं। हालांकि इस पर डॉक्टर से परामर्श करना जरूरी है।
क्या सोनोग्राफी से कोई दर्द होता है?
सोनोग्राफी में इंजेक्शन या चीरा लगाया नहीं जाता है, इसमें डॉक्टर तरल पदार्थ त्वचा पर लगाकर ट्रांसड्यूसर से जांच करते हैं। इसलिए यह दर्दरहित प्रक्रिया होती है।
सोनोग्राफी रिपोर्ट आने में कितना समय लगता है?
सोनोग्राफी रिपोर्ट 10-15 मिनट में ही आ जाता है। आमतौर सोनोग्राफी में शरीर के अंदरूनी हिस्से में आ रहीं समस्या को रियल टाइम में देखा जा सकता है।
सोनोग्राफी और एक्स-रे में क्या अंतर है?
सोनोग्राफी और एक्स-रे एक बहुत ही सामान्य मेडिकल इमेजिंग टेक्निक है। हालांकि सोनोग्राफी में ध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है, जबकि एक्स-रे में रेडिएशन का उपयोग किया जाता है।
सोनोग्राफी के दौरान बच्चे की सेहत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
सोनोग्राफी मां और गर्भस्थ शिशु दोनों के लिए सुरक्षित माना जाता है। गर्भावस्था के दौरान गर्भस्थ शिशु के विकास पर निगरानी रखने के लिए डॉक्टर नियमित रूप से सोनोग्राफी करने के लिए कहते हैं, हालांकि की इस से गर्भस्थ शिशु पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है।
क्या सोनोग्राफी से शरीर पर कोई साइड इफेक्ट होता है?
सोनोग्राफी से शरीर पर कोई साइड इफेक्ट नहीं होते हैं, यह पूर्ण रूप से सुरक्षित है। हालांकि की सोनोग्राफी के दौरान अगर असुविधा महसूस हो तो तुरंत हीं डॉक्टर से परामर्श करें।
प्रेगनेंसी में कितनी बार की जाती है सोनोग्राफी?
प्रेगनेंसी के दौरान 4-5 बार सोनोग्राफी की जाती है। की बार हाई रिस्क वाली प्रेगनेंसी में ज्यादा बार सोनोग्राफी की जरूरत पड़ सकती है।